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केंद्र सरकार द्वारा 1 जुलाई को शुरू किए गए डिजिटल इंडिया प्रोग्राम का अहम हिस्सा एजुकेशन है। पंचायत स्तर तक इंटरनेट सेवाएं और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल एजुकेशन की शुरुआत से सभी तबके के युवाओं के लिए शिक्षा सुलभ होगी। साथ ही, देश के एजुकेशन सिस्टम शिक्षकों की कमी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समस्या आदि से भी निबटने में भी सहूलियत होगी।
प्रोग्राम के अलग-अलग कंपोनेंट से अगले दस वर्षों में 18 लाख नई नौकरियां पैदा होने का भी अनुमान है। यानी सही तरीके से लागू किया जाए तो डिजिटल इंडिया युवाओं को स्तरीय शिक्षा से लेकर रोजगार दिलाने तक में मददगार हो सकता है। लेकिन इसमें कई मुश्किलें भी हैं।
दुनिया से पीछे वर्ष 1947 में आजादी मिलने के बाद से शिक्षा क्षेत्र में भारत ने काफी प्रगति की है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर अब भी काफी कमजोर है। केवल 10 फीसदी छात्र ही उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ते हैं।
कम साक्षरता: आजादी के समय देश की केवल 12 फीसदी आबादी साक्षर थी जो 2011 में 74 फीसदी हो गई, लेकिन 84 फीसदी के वैश्विक औसत से भारत अब भी काफी पीछे है।
एनरॉलमेंट और ड्रॉपआउट : सर्वशिक्षा अभियान जैसे समूह को लक्ष्य कर बनाई गई योजनाओं से प्राइमरी स्तर पर एनरॉलमेंट रेशो सौ फीसदी के करीब पहुंच चुका है, लेकिन ड्रॉपआउट रेट ज्यादा होने के चलते 57 फीसदी छात्र ही प्राइमरी एजुकेशन और 10 फीसदी सेकंडरी एजुकेशन पूरी करते हैं। उच्च शिक्षा में एनरॉलमेंट पिछले 40 वर्षों में 12 गुना बढ़ा है, लेकिन बाकी दुनिया से भारत काफी पीछे है।
युवा आबादी: देश की 60 करोड़ से ज्यादा आबादी युवा है और वर्ष 2020 तक चीन को पीछे छोड़ भारत दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश बन जाएगा, जबकि 2030 तक 59 करोड़ आबादी शहरों में रहने लगेगी। इससे शिक्षण संस्थानों की मांग बढ़ेगी, लेकिन मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर इसे पूरा करना असंभव है।
पुराने लर्निंग टूल्स: देश में शिक्षा के हर स्तर पर लर्निंग के पुराने पैटर्न और टूल्स इस्तेमाल हो रहे हैं। तकनीक के इस्तेमाल में हम काफी पीछे हैं। इसके चलते परंपरागत शिक्षा को वोकेशनल एजुकेशन से जोड़ना मुश्किल हो रहा है।
फायदा:
आसान और सस्ती होगी शिक्षा डिजिटल एजुकेशन की मदद से छात्र घर बैठे अपने मनपसंद संस्थान से कोर्स कर सकते हैं और उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों का मार्गदर्शन भी मिल सकेगा। उन्हें इसके लिए पैसे भी कम खर्च करने होंगे।
सर्वसुलभ होगी शिक्षा: तमाम कोशिशों के बावजूद देश में 3.3 फीसदी बच्चे प्राइमरी स्कूलों से बाहर हैं। वहीं नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार देश की 10 फीसदी युवा आबादी की पहुंच ही उच्च शिक्षण संस्थानों तक है। विकास की मौजूदा रफ्तार बनी रहे तो वर्ष 2020 तक 10 करोड़ छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों से बाहर होंगे।
क्वालिटी एजुकेशन: इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और अन्य समस्याओं के चलते शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है और छात्रों के लर्निंग के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। 7 साल की उम्र के 50 फीसदी बच्चे शब्द नहीं पहचानते जबकि 14 साल तक की उम्र के करीब इतने ही बच्चे गणित के सामान्य सवाल भी हल नहीं कर सकते।
जॉब के लिए ज्यादा तैयार: देश में हर साल करीब 15 लाख इंजीनियर और 3.5 लाख मैनेजमेंट ग्रेजुएट तैयार होते हैं, लेकिन एंप्लॉयमेंट-आेरियंटेड शिक्षा के अभाव में 25 फीसदी छात्र ही नौकरी के लायक होते हैं। सामान्य ग्रेजुएट्स के मामले में यह आंकड़ा केवल 15 फीसदी है। डिजिटल माध्यम के जरिये वोकेशनल ट्रेनिंग का विस्तार कर छात्रों को नौकरी के लिए बेहतर तैयार किया जा सकता है।
शिक्षकों की कमी से निजात: देशभर के करीब 14 लाख स्कूलों में शिक्षकों के नौ लाख से ज्यादा पद खाली हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में हालात और भी खराब हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 38 फीसदी, आईआईएम संस्थानों में 25 फीसदी और आईआईटीज़ में 39 फीसदी शिक्षक कम हैं।
इंटरनेट की पहुंच: इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या के आधार पर भारत का दुनिया में चीन और अमेरिका के बाद तीसरा स्थान है, लेकिन 2014 के अंत तक देश की केवल 19.19 फीसदी आबादी ही इंटरनेट से जुड़ी थी।
स्पीड: इंटरनेट की स्पीड भी एक बड़ा मुद्दा है। टेलीकॉम कंपनियों के पास स्पेक्ट्रम की कमी के कारण वॉयस कॉलिंग में समस्याएं आती हैं, ऐसे हालत में डाटा ट्रांसफर के लिए 5 एमबीपीएस का वैश्विक औसत हासिल करना भी अभी दूर की कौड़ी है। अमेरिका में तो ब्रॉडबैंड के लिए 25 एमबीपीएस स्पीड अनिवार्य करने की मांग हो रही है।
रूरल- अर्बन डिवाइड: शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की ज्यादा जरूरत ग्रामीण क्षेत्रों में है, लेकिन गांवों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर शहरों के मुकाबले काफी कमजोर है। यही कारण है कि देश में इंटरनेट का उपयोग करने वाली गरीब 23 फीसदी आबादी ही ग्रामीण क्षेत्रों से है। देशभर में आधारभूत संरचनाओं के समान विकास से ही इस फर्क को कम किया जा सकता है।
समस्याएं: इंटरनेट की पहुंच और स्पीड हैं बड़े मुद्दे डिजिटल इंडिया के तहत वर्ष 2020 तक देशभर में 60 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन और ग्रामीण क्षेत्रों में 100 फीसदी टेली डेंसिटी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह देश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन इसमें कई चुनौतियां भी हैं।
एजुकेशन इन इंडिया: फैक्ट्स एंडफिगर्स 5.9 ट्रिलियन रुपए की हो जाएगी देश की एजुकेशन इंडस्ट्री 2015 के अंत तक। 14 लाख से ज्यादा स्कूल और करीब 35 हजार उच्च शिक्षण संस्थान हैं देश में। 30 फीसदी एनरॉलमेंट रेशो का लक्ष्य निर्धारित किया गया है उच्च शिक्षा संस्थानों में 2020 तक।
Source : http://www.bhaskar.com/news/EDUC-EDNE-expert-view-for-digital-india-education-programme-5041050-NOR.html
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नौकरियों के बढ़ेंगे अवसर DIGITAL INDIA एजुकेशन से
केंद्र सरकार द्वारा 1 जुलाई को शुरू किए गए डिजिटल इंडिया प्रोग्राम का अहम हिस्सा एजुकेशन है। पंचायत स्तर तक इंटरनेट सेवाएं और ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल एजुकेशन की शुरुआत से सभी तबके के युवाओं के लिए शिक्षा सुलभ होगी। साथ ही, देश के एजुकेशन सिस्टम शिक्षकों की कमी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की समस्या आदि से भी निबटने में भी सहूलियत होगी।
प्रोग्राम के अलग-अलग कंपोनेंट से अगले दस वर्षों में 18 लाख नई नौकरियां पैदा होने का भी अनुमान है। यानी सही तरीके से लागू किया जाए तो डिजिटल इंडिया युवाओं को स्तरीय शिक्षा से लेकर रोजगार दिलाने तक में मददगार हो सकता है। लेकिन इसमें कई मुश्किलें भी हैं।
दुनिया से पीछे वर्ष 1947 में आजादी मिलने के बाद से शिक्षा क्षेत्र में भारत ने काफी प्रगति की है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर अब भी काफी कमजोर है। केवल 10 फीसदी छात्र ही उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ते हैं।
कम साक्षरता: आजादी के समय देश की केवल 12 फीसदी आबादी साक्षर थी जो 2011 में 74 फीसदी हो गई, लेकिन 84 फीसदी के वैश्विक औसत से भारत अब भी काफी पीछे है।
एनरॉलमेंट और ड्रॉपआउट : सर्वशिक्षा अभियान जैसे समूह को लक्ष्य कर बनाई गई योजनाओं से प्राइमरी स्तर पर एनरॉलमेंट रेशो सौ फीसदी के करीब पहुंच चुका है, लेकिन ड्रॉपआउट रेट ज्यादा होने के चलते 57 फीसदी छात्र ही प्राइमरी एजुकेशन और 10 फीसदी सेकंडरी एजुकेशन पूरी करते हैं। उच्च शिक्षा में एनरॉलमेंट पिछले 40 वर्षों में 12 गुना बढ़ा है, लेकिन बाकी दुनिया से भारत काफी पीछे है।
युवा आबादी: देश की 60 करोड़ से ज्यादा आबादी युवा है और वर्ष 2020 तक चीन को पीछे छोड़ भारत दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला देश बन जाएगा, जबकि 2030 तक 59 करोड़ आबादी शहरों में रहने लगेगी। इससे शिक्षण संस्थानों की मांग बढ़ेगी, लेकिन मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर इसे पूरा करना असंभव है।
पुराने लर्निंग टूल्स: देश में शिक्षा के हर स्तर पर लर्निंग के पुराने पैटर्न और टूल्स इस्तेमाल हो रहे हैं। तकनीक के इस्तेमाल में हम काफी पीछे हैं। इसके चलते परंपरागत शिक्षा को वोकेशनल एजुकेशन से जोड़ना मुश्किल हो रहा है।
फायदा:
आसान और सस्ती होगी शिक्षा डिजिटल एजुकेशन की मदद से छात्र घर बैठे अपने मनपसंद संस्थान से कोर्स कर सकते हैं और उन्हें सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों का मार्गदर्शन भी मिल सकेगा। उन्हें इसके लिए पैसे भी कम खर्च करने होंगे।
सर्वसुलभ होगी शिक्षा: तमाम कोशिशों के बावजूद देश में 3.3 फीसदी बच्चे प्राइमरी स्कूलों से बाहर हैं। वहीं नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लायड इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार देश की 10 फीसदी युवा आबादी की पहुंच ही उच्च शिक्षण संस्थानों तक है। विकास की मौजूदा रफ्तार बनी रहे तो वर्ष 2020 तक 10 करोड़ छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों से बाहर होंगे।
क्वालिटी एजुकेशन: इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और अन्य समस्याओं के चलते शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ता है और छात्रों के लर्निंग के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। 7 साल की उम्र के 50 फीसदी बच्चे शब्द नहीं पहचानते जबकि 14 साल तक की उम्र के करीब इतने ही बच्चे गणित के सामान्य सवाल भी हल नहीं कर सकते।
जॉब के लिए ज्यादा तैयार: देश में हर साल करीब 15 लाख इंजीनियर और 3.5 लाख मैनेजमेंट ग्रेजुएट तैयार होते हैं, लेकिन एंप्लॉयमेंट-आेरियंटेड शिक्षा के अभाव में 25 फीसदी छात्र ही नौकरी के लायक होते हैं। सामान्य ग्रेजुएट्स के मामले में यह आंकड़ा केवल 15 फीसदी है। डिजिटल माध्यम के जरिये वोकेशनल ट्रेनिंग का विस्तार कर छात्रों को नौकरी के लिए बेहतर तैयार किया जा सकता है।
शिक्षकों की कमी से निजात: देशभर के करीब 14 लाख स्कूलों में शिक्षकों के नौ लाख से ज्यादा पद खाली हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों में हालात और भी खराब हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 38 फीसदी, आईआईएम संस्थानों में 25 फीसदी और आईआईटीज़ में 39 फीसदी शिक्षक कम हैं।
इंटरनेट की पहुंच: इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या के आधार पर भारत का दुनिया में चीन और अमेरिका के बाद तीसरा स्थान है, लेकिन 2014 के अंत तक देश की केवल 19.19 फीसदी आबादी ही इंटरनेट से जुड़ी थी।
स्पीड: इंटरनेट की स्पीड भी एक बड़ा मुद्दा है। टेलीकॉम कंपनियों के पास स्पेक्ट्रम की कमी के कारण वॉयस कॉलिंग में समस्याएं आती हैं, ऐसे हालत में डाटा ट्रांसफर के लिए 5 एमबीपीएस का वैश्विक औसत हासिल करना भी अभी दूर की कौड़ी है। अमेरिका में तो ब्रॉडबैंड के लिए 25 एमबीपीएस स्पीड अनिवार्य करने की मांग हो रही है।
रूरल- अर्बन डिवाइड: शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की ज्यादा जरूरत ग्रामीण क्षेत्रों में है, लेकिन गांवों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर शहरों के मुकाबले काफी कमजोर है। यही कारण है कि देश में इंटरनेट का उपयोग करने वाली गरीब 23 फीसदी आबादी ही ग्रामीण क्षेत्रों से है। देशभर में आधारभूत संरचनाओं के समान विकास से ही इस फर्क को कम किया जा सकता है।
समस्याएं: इंटरनेट की पहुंच और स्पीड हैं बड़े मुद्दे डिजिटल इंडिया के तहत वर्ष 2020 तक देशभर में 60 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन और ग्रामीण क्षेत्रों में 100 फीसदी टेली डेंसिटी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह देश की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, लेकिन इसमें कई चुनौतियां भी हैं।
एजुकेशन इन इंडिया: फैक्ट्स एंडफिगर्स 5.9 ट्रिलियन रुपए की हो जाएगी देश की एजुकेशन इंडस्ट्री 2015 के अंत तक। 14 लाख से ज्यादा स्कूल और करीब 35 हजार उच्च शिक्षण संस्थान हैं देश में। 30 फीसदी एनरॉलमेंट रेशो का लक्ष्य निर्धारित किया गया है उच्च शिक्षा संस्थानों में 2020 तक।
Source : http://www.bhaskar.com/news/EDUC-EDNE-expert-view-for-digital-india-education-programme-5041050-NOR.html
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